Book Review : तेरहवाँ दिन: अभिमन्यु और चक्रव्यूह — मणि कृष्ण वर्मा

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मैंने जब मणि कृष्ण वर्मा द्वारा लिखित “तेरहवाँ दिन: अभिमन्यु और चक्रव्यूह” पढ़ना शुरू किया, तो मुझे यह आभास नहीं था कि यह पुस्तक केवल महाभारत के एक युद्ध-दिन का पुनर्कथन नहीं, बल्कि जीवन की जटिलताओं पर एक गहन आत्मचिंतन बन जाएगी।

लेखक ने अभिमन्यु की कथा को ऐसे प्रस्तुत किया है कि वह हर उस व्यक्ति से संवाद करती है, जो अपने जीवन में किसी न किसी चक्रव्यूह का सामना कर रहा है।

कथानक (Plot)– तेरहवाँ दिन

इस पुस्तक का कथानक महाभारत के तेरहवें दिन की घटना पर केंद्रित है, जब अभिमन्यु चक्रव्यूह में प्रवेश करता है। पढ़ते समय मुझे यह महसूस हुआ कि मणि कृष्ण वर्मा युद्ध की बाहरी घटनाओं से अधिक उस आंतरिक संघर्ष को उभारते हैं, जो उस दिन हर पात्र के भीतर चल रहा था। कथा आगे बढ़ते हुए साहस, रणनीति, मौन समर्थन और विवशता के कई स्तरों को खोलती है।

मूल अवधारणा (Premise)– तेरहवाँ दिन

मेरे लिए इस पुस्तक की सबसे सशक्त बात इसका मूल विचार है। लेखक चक्रव्यूह को केवल एक सैन्य संरचना नहीं रहने देते, बल्कि उसे जीवन का प्रतीक बना देते हैं। अभिमन्यु यहाँ उस युवा का प्रतिनिधित्व करता है, जिसे आधा ज्ञान है, पर पूरा साहस है। “तेरहवाँ दिन” मुझे एक ऐसे मोड़ की तरह लगा, जहाँ व्यक्ति अपने निर्णयों और परिस्थितियों के बीच फँस जाता है।

पात्र-चित्रण (Character Development) -तेरहवाँ दिन

अभिमन्यु का चरित्र मुझे अत्यंत मानवीय और संवेदनशील लगा। मणि कृष्ण वर्मा ने उसे केवल वीर योद्धा नहीं, बल्कि एक ऐसे युवा के रूप में गढ़ा है जो अपेक्षाओं, कर्तव्य और असमय परिपक्वता के बोझ से जूझ रहा है। अन्य पात्र भी कहानी में केवल पृष्ठभूमि नहीं बनते, बल्कि अपनी-अपनी सीमाओं और चुप्पियों के माध्यम से कथानक को गहराई देते हैं।

लेखन शैली (Writing Style)-तेरहवाँ दिन

लेखक की लेखन शैली ने मुझे लगातार बाँधे रखा। भाषा सरल होते हुए भी भावनात्मक और विचारोत्तेजक है। पौराणिक संदर्भों को आधुनिक दृष्टिकोण से जोड़ने की उनकी क्षमता प्रशंसनीय है। कई स्थानों पर वर्णन इतना प्रभावशाली है कि पाठक स्वयं को चक्रव्यूह के भीतर खड़ा महसूस करता है।

अंतिम निर्णय (Final Verdict) -तेरहवाँ दिन

मेरे अनुसार, “तेरहवाँ दिन: अभिमन्यु और चक्रव्यूह” मणि कृष्ण वर्मा की एक अत्यंत सशक्त और विचारप्रधान कृति है। यह पुस्तक केवल पढ़ी नहीं जाती, बल्कि भीतर तक उतरती है और प्रश्न छोड़ जाती है। पौराणिक कथा को आधुनिक जीवन से जोड़ने की इसकी दृष्टि इसे विशेष बनाती है।
मैं इस पुस्तक को पूरे 5 में से 5 अंक देता हूँ (⭐⭐⭐⭐⭐) और इसे हर उस पाठक को पढ़ने की अनुशंसा करता हूँ जो मिथक, दर्शन और आत्मविश्लेषण में रुचि रखता है।